Last modified on 18 जनवरी 2015, at 20:50

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठाके हाथ / साग़र निज़ामी

अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठाके हाथ,
देखा जो मुझको तो छोड़ दिए मुस्करा के हाथ।

कासिद तेरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया,
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आके हाथ।

देना वो उसका सागर-ए-मय याद है निज़ाम,
मुँह फेर कर उधर को, इधर को बढ़ा के हाथ।