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"अंगद रावण संवाद प्रसंग (होली फाग) / आर्त" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आर्त }} {{KKCatKavita‎}} {{KKAnthologyHoli}} Category:अवधी भाषा <poem> रघुपति …)
 
 
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अब होंहि विधाता तुम्‍हहिं बाम, भयउ काल विवश मतवारे
 
अब होंहि विधाता तुम्‍हहिं बाम, भयउ काल विवश मतवारे
 
दशानन द्वारे ।।4।।
 
दशानन द्वारे ।।4।।
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'''इस गीत को गाने की विधा ’यू ट्यूब’ पर चलचित्रों के माध्‍यम से देखी व सीखी जा सकती है  । उत्‍सुक बन्‍धु  ’यू ट्यूब’ पर जाकर इसके नाम से खोज करें ।'''
 
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12:24, 18 मार्च 2011 के समय का अवतरण

रघुपति पद पंकज करि प्रणाम चले बालि सुवन ललकारे
दशानन द्वारे ।।
मग में मिल्‍यो अरि सुत उतपाती, बोला चले कहाँ निसिचरघाती
अस कहि चरण प्रहारे ।
गहि सोई चरण कीस महि मारयौ, रावण सुत सुरलोक सिधारयौ ।
चले भागि निसाचर दल तमाम, लंका‍पति त्राहि पुकारे
दशानन द्वारे ।।1।।

कह लंकेश कहाँ से तू आया, करत उपद्रव न मन सकुचाया
मूढ न चलत संभारे ।
कह अंगद सुनु निसिचर नायक, बालितनय मैं रघुवर पायक ।
पठयउ मोहि करूणासिन्‍धु राम, आयउ हित काज तुम्‍हारे
दशानन द्वारे ।।2।।

जग में भयउ तुम बहुत प्रतापी, कस हरि लाये विदेह सुता पापी
मतिभ्रम भयउ तुम्‍हारे ।
मम सिख मानि राम पहि जाई, जनक सुता प्रभु कह लौटाई ।
हरिचरण गहउ कीहि त्राहिमाम, तव बजेंगे कुशल नगारे
दशानन द्वारे ।।3।।

सुनि सकोप बोला दशकंधर, गुरू जिमि मो‍हि सिखवत खल बंदर
भूलि प्रभाव हमारे ।
अंगद हृदय सुमिरि भगवाना, पद रोपेउ खल दल खिसियाना ।
अब होंहि विधाता तुम्‍हहिं बाम, भयउ काल विवश मतवारे
दशानन द्वारे ।।4।।

इस गीत को गाने की विधा ’यू ट्यूब’ पर चलचित्रों के माध्‍यम से देखी व सीखी जा सकती है । उत्‍सुक बन्‍धु ’यू ट्यूब’ पर जाकर इसके नाम से खोज करें ।