http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_/_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A5%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97_/_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97_12_/_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80&feed=atom&action=historyअंगिका रामायण / चौथा सर्ग / भाग 12 / विजेता मुद्गलपुरी - अवतरण इतिहास2024-03-28T10:01:21Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_/_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A5%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97_/_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97_12_/_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=206595&oldid=prevLalit Kumar: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2016-07-04T21:49:12Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=अंगिका रामायण / चौथा सर्ग / विजेता मुद्गलपुरी<br />
}}<br />
{{KKCatAngikaRachna}}<br />
<poem><br />
जब ढेर दिन पर मित्र से मिलन भेल<br />
ढेर-ढेर तक दुख-सुख बतियैलका।<br />
शृंगी आरो शान्ता के रोॅ आसिर-बचन कहि<br />
अपनोॅ आवै के भी प्रयोजन बतैलका।<br />
कुछ दिन राजा दशरथ परिवार संग<br />
रोमपाद घर ‘अंगदेश’ में बितैलका।<br />
शान्ता आरो शृंगी के अवध लेॅ चलै के लेली<br />
राजा दशरथ तब अनुमति पैलका॥111॥<br />
<br />
अवध के तब मुख्य पथ के सजैलोॅ गेलै<br />
काते-कात स्वस्तिक-शंख बनवैलकै।<br />
ठाम-ठाम स्वागत में बनल तोरण द्वार<br />
ओकरा में स्वागत के शब्द लिखैलकै।<br />
शंख ध्वनि, घंटा आरो नगारा गूँजी उठल<br />
ठाम-ठाम ढोल-ढाक दुंदुंभि बजैलकै।<br />
रसता निहारै सब शृंगी आगमन के रोॅ<br />
भाट सिनी शृंगी केक महातम सुनैलकै॥112॥<br />
<br />
पहिलोॅ रथोॅ पे दशरथ तीनों रानी संग<br />
जेकरोॅ उपर ज्ञानी सारथी सुमंत छै।<br />
दोसरोॅ रथोॅ पे शान्ता-शृंगी छै विराजमान<br />
जगत में जिनकर यश के न अंत छै।<br />
तेसरोॅ रथोॅ पे अंगरक्षक सवार भेल<br />
जिनकोॅ आयुध डरें कंपित दिगंत छै।<br />
चौथा-पाँचवा रथोॅ पे सैनिक सवार भेल<br />
सब एक पर एक बड़ गुनवन्त छै॥113॥<br />
<br />
शृंगी दशरथ से प्रसन्न भेल नर-नारी<br />
सादर सम्मान सब पूजन करलकै।<br />
शृंगी आगमन से नगर धन्य-धन्य भेल<br />
सब पुरवासी बड़ी आनन्द मनैलकै।<br />
यज्ञ के मुहुरत बिचार करै शृंगी ऋषि<br />
यज्ञ के रोॅ तिथि माह फागुन बतैलकै।<br />
रानी सिनी संग शान्ता आनन्द मगन रहै<br />
साल भर सुख से अवध में बितैलकै॥114॥<br />
<br />
दोहा -<br />
<br />
शान्ता छेकै शान्ति के, जानोॅ सगुन स्वरूप।<br />
धन्य अवध वासी बनल, देखि शान्ति के रूप॥20॥<br />
<br />
शान्ति के सगुण रूप शान्ता के जे ध्यान करै<br />
अपने सहज ही समाधि लगि जाय छै।<br />
व्यथित बेचैन जौने शान्ति के तलाश करै<br />
शृंगी-शृंगी सुमरतें शान्ति मिली जाय छै।<br />
सब दुख टारै, दुरभिक्ष से उबारै, निज-<br />
भाग सहियारै, जौने शृंगी कथा गाय छै।<br />
भौतिक दुखोॅ में जौने शृंगी सुमिरन करै<br />
सब उलझन के निदान मिली जाय छै॥115॥<br />
<br />
अंगिका रामायण<br />
शृंगी विवाह खण्ड<br />
चौथा सर्ग पूर्ण<br />
</poem></div>Lalit Kumar