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अंगिका रामायण / छठा सर्ग / भाग 11 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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एक साल बाद निकलल एरावत हाथी
स्वेत हाथी देवराज इन्द्र अपनैलकै।
ओकरो से एक साल बाद उच्चश्रवा घोड़ा
जौने अश्व स्वर्ग के रोॅ शोभा के बढ़ैलकै।
तेकरा से तीन माह बाद अपसरा सिनी
जौने कोनो देवता के वरण न कैलकै।
चंचल चरित्र अप्सरा के न बात पूछोॅ
देवता असुर नाग सब के लुभलकै॥101॥

सोरठा -

नारी परम स्वतंत्र, सब के मन-रंजन करै।
दाम्पत्य के मंत्र, ग्रहण करै नै मान बस॥14॥

एक साल बाद तब चन्द्रमा प्रकट भेल
सूरज शीतल तेज उनका थम्हैलका।
सारंग-पिनाक-धनु गाण्डिव प्रकट भेल
तीनों देवता मिली जेकर मान कैलका।
एकक बरस के रोॅ ठीक अन्तराल पर
शंख-पारिजात-कौस्तुभ मणि पैलका।
तब भगवती देवी लक्ष्मी प्रकट भेली,
जिनका कि विष्णु भगवान अपनैलका॥102॥

लक्ष्मी के संग ही प्रकटली दरिद्रा देवी
उनकों स्वभाव गुण किनको न भैलकै।
अशुभ अमंगल स्वरूप करकश बोल
जिनकोॅ स्वरूप सब जन के डरैलकै।
लक्ष्मी जी के रोॅ जेठ बहिन दरिद्रा देवी
जिनका कि उद्दालक ऋषि अपनैलकै।
जेना जग हित लेली शिव विषपायी भेला
वहेॅ काम फेरो उद्दालक ऋषि कैलकै॥103॥

अमृत के संग धनवन्तरी प्रकट भेल
अमृत के देखि देव-राक्षस हरसलै।
अमृत के लेली देव-दानव उलझि गेल
अमरत्व कामना स्वारथ बनी बसलै।
लोभ में उलझि गेल दिति-अदिति के पुत्र
एक दोसरा उपर टूटि केॅ बरसलै।
अमृत कलश लेॅ केॅ भागि गेल विष्णु देव
समर में दिति पुत्र मुँह वलें खसलै॥104॥

दैत्य के रोॅ वध से दुखित भली दिति माता
एक-टा कठोर व्रत दिति अपनैलकी।
इन्द्र हन्ता पुत्र के रोॅ कलना मनोॅ में राखी
अनुकूल संयम-नियम सब कैलकी।
व्रत भंग करै लेली आवी गेला इन्द्रदेव
शत्रु जनि केॅ भी क्रोध तनियो न कैलकी।
माता कही केॅ दिति के सेवा में लागल इन्द्र
शत्रु के भी पुत्र कही दिति अपनैलकी॥105॥

एक दिन साँझवेर ओलती में बैठी दिति
ठेहुना के बल मााि अपनोॅ टिकैलकै।
झपकी लगल लट लटकि चरण चूमै
संयम सदोष दिति समझि न पैलकै।
धरि केॅ सुक्षम रूप गर्भ मंे प्रवेश भेल
गर्भ के शिशु के इन्द्र सात खण्ड कैलकै।
सातो खण्ड के करलकाथ सात-सात खण्ड
दिति के रोॅ गर्भ उनचास खण्ड कैलकै॥106॥

दोहा -

सयम व्रत के मूल छै, बिन संयम पाखण्ड।
संयम साधै फल मिलै, संयम टूटै दण्ड॥13॥

कहलन विश्वामित्र इहेॅ ऊ जगह छिकै
जहाँ इन्द्र दिति के रोॅ व्रत भंग कैलकै।
जब माता दिति के रोॅ व्रत निसफल भेल
वहेॅ उनचासो पुत्र मरूत कहैलकै।
फेरो ई जगह के विशाल नामाकरण के
विश्वामित्र पौराणिक कारण बतैलकै।
इक्षाकु नरेश के विशाल नाम पुत्र भेल
जिनका से देश ई विशाला नाम पैलकै॥107॥

हुनकरे वंशज जे सुमति नरेश भेल
फेरो से विशाला राज रचि केॅ बसैलका।
अखनी ई राजय के रोॅ वारिस सुमित छिक
विश्वामित्र राम-लछमन के सुनैलका।
कथा भेल पूरण विशाला नरेश आवी गेल
रात राम-लखन विशाला के बितैलका।
कौशिक के देखि केॅ सुमति गदगद भेल
तीनों के अतिथि सतकार हुन्हीं कैलका॥108॥

चलला वहाँ से विश्वामित्र-राम-लक्ष्मण
मोहक वियार पावी रामजी ठमकलै।
चारों दिश मह-मह-मह-मह करै
भाँति-भाँति फूल पात सगरो गमकलै।
चन्दन-कपूर-मोलसरी अेॅ चमेली के रोॅ
गंध-छिकझोड़ी भागै पवन सहकलै।
आम-कटहल-नींबू-नारंगी-अनार-बेर
ऋतु अनुसार सब फूलि-फरि-पकलै॥109॥

खग के समूह भाँति-भाँति कलरव करै
सरोवर के रोॅ शोभा कहलोॅ न जाय छै।
वहाँ के वातावरण सब अजबे लगल
कोनो ऋषि-मुनि-यति कहीं न दिखाय छै।
पुछलक रामचन्द्र कुटिया के रोॅ रहस्य
तब विश्वामित्र ऋषि उनका बताय छै।
गौतम ऋषि के इहेॅ मनोरम कुटि छिक
अहिल्या के शाप कथा उनका सुनाय छै॥110॥