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अंगिका रामायण / छठा सर्ग / भाग 1 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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नित सुमिरन करौं शिव के स्वरूप गुरु
जिनका कृपा से टेढ़ चन्द्रमों पुजावै छै।
जिनकर नाम भवसागर के पार करै
ज्ञान के विज्ञान के जे निधि कहलावै छै।
जिनका कृपा से मूक जन के सबद मिलै
नयन विहीन भी सहज दृष्टि पावै छै।
बार-बार वन्दौं गुरु ज्ञान के प्रकाश रूप
जिन्दगी के जौने कि अन्धरिया मिटावै छै॥1॥

सोरठा -

तीरथराज प्रयाग, जहाँ बसै सुधि संत जन।
और सराहै भाग, रामचरित जब जब सुनै॥1॥

भेल कथा विस्तार, याज्ञवल्य आगू कहै।
महिमा अपरम्पार, दशरथ नन्दन राम के॥2॥

देलन सब विधि ज्ञान, गुरु वशिष्ठ श्री राम के।
कहल हे विद्वान, महाराज दशरथ सुनोॅ॥3॥

भ्रमण करत अब राम, सौंसे जम्बद्वीप के।
विचरत सब शुभधाम, पावन तीरथ वन नदी॥4॥

बाँया हाथ दतुअन, दायाँ हाथ पानी लेने
भारे-भोर कौशल्या जी राम कै जगावै छै।
जागल समस्त ऋषि, शिव-ब्रह्मा जागी गेल
जागोॅ रामचन्द्र कही, परसि जागवै छै।
जागी गेल रामचन्द्र दैनिक करम करि
सोना के रोॅ चौकी पर लानी नहलावै छै।
बायाँ हाथ भोजन अेॅ दायाँ हाथ जल लेने
आसन बिछावी रामचन्द्र के खिलावै छै॥2॥

देलका प्रथम शिक्षा राम के वशिष्ठ मुनि
समुचे भुवन के स्वरूप बतलैलका।
पूरे जम्बूद्वीप के स्वरूप समझावै लेली
राजा दशरथ जी के संग बतियैलका।
देखि शुभ दिन, अेॅ नछत्र शुभ, शुभ घड़ी
राम के भ्रमण के रोॅ जतरा बनैलका।
सब कुछ शुभ-शुभ, भूषण वसन शुभ
शुभ-शुभ लानी रामचन्द्र के पेन्हैलका॥3॥

अवध नगर से बाहर भेल रथ जब
घूमि क तीरथ असनान दान कैलका।
गया, काशी, धर्मारण्य, पुष्पक नैमिषारण्य
श्री शैल, केदारनाथ सगरो घुमैलका।
मानसरोवर हयग्रीव तीर्थ, अग्नितीर्थ
महातीर्थ, पुण्यतीर्थ, दरशन कैलका।
कार्तिकेय, शालिग्राम, चौसठ महादेव के
विन्ध्याचल मंद्राचल के दरस पैलका॥4॥

पावन-पवित्र नदी, पुण्य थल, तप थल,
आश्रम जंगल आदि के भ्रमण कैलका।
सिन्धु, भागिरथी, नर्मदा, सरस्वती, यमुना
सतलज, चिनाव, इरावती नहैलका।
कावेरी अेॅ कृष्णा व्यास सरयु अेॅ विन्ध्याचल
कमला, चानन, कोशी, वरूआ नहैलका।
घूमि फिरि फेरो से आवी गेला प्रयागराज
सगरो सुमन्त रामचन्द्र के घुमैलका॥5॥

एक दिन महाराज कुलगुरु संग बैठी
सादर अपना मनोकामना बतैलका।
राम अब सब ज्ञान गुण से निपुन भेल
उनकोॅ विवाह के रोॅ योजना बनैलका।
पुरोहित, मंत्री, बंधु-बांधव के संग राजा
फेरो बैठी व्याह के रोॅ चरचा चलैलका।
राम जी के व्याह पर सर्व सहमति भेल
उत्तम सलाह यहु सब के लुभैलका॥6॥

सोरठा -

शुभ-शुभ राम किशोर, भेल व्याह के जोग जब
लोग कहै हर ओर, राम व्याह देखेॅ चहौं॥5॥

तखने पहुँचि गेला तहाँ विश्वामित्र ऋषि
सब मिली सादर सम्मान तब कैलका।
ऋषि दरसन करि, सब धन्य-धन्य भेल
पूछी केॅ कुशल छेम आसन बिठैलका।
बेर-बेर दशरथ अपनोॅ सराहै भाग
कौशिक मुनि के रोॅ हजार जस गैलका।
ऋषि आगमन से ई जगह तीरथ भेल
अपनोॅ मनोॅ के उद्गार बतलैलका॥7॥

दसो इन्द्रिय के जौने राम जी में रत करै
वहेॅ दशरत् घर राम अवतारै छै।
बेर-बेर मन जब आसुरी आतंक रचै
साधक सहजें विश्वामित्र गुण धारै छै।
तप बलें हिय में जे राम के प्रकट करै
वहेॅ राम तब मन असुर के मारै छै।
धारी केॅ समस्त गुण विश्वामित्र के रोॅ राम
अबला अहिल्या जेन्होॅ शापित के तारै छै॥8॥

ज्ञान यज्ञ में विवेक-बुद्धि के हवन चलै
विविध विचार के जे समिधा बनावै छै।
डाली कुविचार जब यज्ञा में विघन डालै
छह दोष धारी मन असुर कहावै छै।
यति जकाँ जीव मन के रोॅ उतपात सहै
मन के मारल जीव सम्हली न पावै छै।
मन के विरूद्ध जब ठार भेल कोनो संत
मानस में वहेॅ विश्वामित्र कहलावै छै॥9॥

विश्व के जे मित्र भेल, वहेॅ विश्वामित्र भेल
परम अभेद दरसन व्रतधारी छै।
वहेॅ विश्वामित्र जौने राम में रामत्व भरै
प्रकटै अनेक अस्त्र जग हितकारी छै।
गायत्री माता के जौने तप से प्रकट करै
साधक के लेली जौने बड़ हितकारी छै।
वहेॅ विश्वामित्र रचि सकै छै दोसर जग
नवसृष्टि रचना के वहेॅ अधिकारी छै॥10॥