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अंगिका रामायण / छठा सर्ग / भाग 4 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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माता से आदेश माँगी चलला दोनों कुमार
ऋषि के रोॅ यज्ञ निशिचर से बचाय लेॅ।
आगू-आगू ऋषि, पिछू-पिछू दोनों धीर-वीर
चललाथ ऋषि के मनोरथ पुराय लेॅ।
श्याम आरू गौर दोनों सुन्दर मोहक लागै
निकलल जनु कामदेव के लजाय लेॅ।
काँधा पर तरकश, कर में धनुष वाण
लागल आखेट ऋषि चलला सिखाय लेॅ॥31॥

दोहा -

सब के मन निर्मल करत, हतत क्रोध अरू काम।
नाशत दुरगुण आसुरी, ऋषि कौशिक के राम॥3॥

कौशिक के संग राम-लक्षमण लागै जेना
ब्रह्मा जी के संग दोनों अश्विनी कुमार छै।
तन पर सोहै नीक वस्त्र आरो आभूषण
कर में धनुष अेॅ कमर तलवार छै।
सरयु के तट पर आवी क ठहरि गेला
जहाँ कि सुगन्ध मंद शीतल वयार छै।
वहीं ‘बला-अतिबला’ मंत्र के ग्रहण भेल
जौने शक्ति धीर वीर के लेली शृंगार छै॥32॥

‘बला-अतिबला’ के प्रभाव छै बड़ी प्रवल
बुद्धि आरो ज्ञान के जे प्रखर बनाय छै।
भूख-प्यास-निन्द अेॅ थकान के मेटनिहार
‘वला-अतिवला’ मंत्र प्रकट बुझाय छै।
जोने मंत्र रोग-दुख-शोक के रोॅ नास करै
जेकरा से मन चित्त दृढ़ बनी जाय छै।
जौने शक्ति वीर के अचेत मंे सुरक्षा करै
जोने सब विघन से सहजे बचाय छै॥33॥

जोने शक्ति लेली गुरु कठिन तपस्या करै
जौने शक्ति पावै लेली उमर खपाय छै।
जौने शक्ति लेली गुरु धूप-सीत-बात सहै
जौने शक्ति लेली गुरु तन के तपाय छै।
करि केॅ कठिन तप पावै छै अमोघ शक्ति
सिद्धि करि तब सिद्ध संत कहलाय छै।
भनत विजेता सदगुरु अरजित शक्ति
समझि सुपात्र सद्-शिष्य के थम्हाय छै॥34॥

जौने मंत्र विश्वामित्र पैलका तपस्या करि
राम लक्षमण के ऊ सहजे थम्हैलका।
गुरु के संचित धन निज विरासत बूझि
राम लक्ष्मण निज सिर पर धैलका।
मंत्र के प्रभाव सत-सूरज के तेज जकाँ
राम के किरति में निखारो आर लैलका
‘वला-अतिवला’ मंत्र पावी अनमोल धन
वार-वार गुरु के आभार राम कैलका॥35॥

राम-लक्ष्मण तब गुरु विश्वामित्र संग
एक रात सरयु के तट पे बितलैका।
जीवन के प्रथम मिलल अनुभव एक
गुरु संग भूमि पे सयन राम कैलका।
गुरु के रोॅ नेह, माता-पिता के रेॉ प्रूार जकाँ
प्रथम-प्रथम अनुभव राम पैलका।
दादी के कहानी जकाँ कही केॅ पुराण कथा
विश्वामित्र राम लक्षमणके सुनैलका॥36॥

दोहा -

गुरु मिलना आसान छै, बिरले शिष्य सुयोग।
मुद्गल शिष्य सुयोग से, गुरु के समझै लोग॥4॥

जब रात बीतल सुखद सुप्रभात भेल
विश्वामित्र राम लक्षमण के बतैलका।
नित्य संध्या पूजन, गायत्री मंत्र जाप विधि
दैनिक जीवन के रोॅ गूढ़ समझैलका।
वहाँ से चलल तीनों गंगा के किनार ऐला
जहाँ गंगा-सरयु के संगम देखैलका।
वहाँ से चलल ऐला सीधे तीनों ‘अंग देश’
कामदाहा शिव जी दरसन पैलका॥37॥

कहलन विश्वामित्र इहेॅ ऊ जगह छिक
जहाँ आवी अखण्ड समाधि शिव धैनें छल।
शिव के समाधि भंग करै लेली देवगण
रचि परपंच कामदेव के भेजैनें छल।
शिव जी के कोप बस कामदेव जरि गेल
रति तब व्यथित विलाप बड़ कैनें छल।
रति के विलाप देखि शंकर द्रवित भेल
यही ठाम काम के अनंग हुन्हीं कैने छल॥38॥

ब्रह्मा के रोॅ मैथुनी जगत के बचावै लेली
महादेव काम के अनंग करि देलका।
पावी वरदान काम जगत में व्यापि गेल
काम के रोॅ ठाम अंग-अंग करि देलका।
हर एक प्राणी काम के रंगोॅ में रंगी गेल
काम अंतरंग-बहिरंग करि देलका।
काम भेल अलख अगोचर अनन्त रूप
योगी जन के रोॅ शिव दंग करि देलका॥39॥

कही केॅ अनंग कथा कौशिक दोसर रात
ऋषि-मुनि संग ‘अंग देश’ मंे बितैलका।
जिनका भी ज्ञात होल राम आगमन के रोॅ
आवी केॅ कौशिक पास दरसन कैलका।
कही केॅ पुराण कथा, वेदकथा, लोककथा
एक पर एक कथा राम के सुनैलका।
देर रात बीत गेल कथा-सतसंग बिच
ऋषि के आदेश से आराम राम कैलका॥40॥