Last modified on 21 जुलाई 2016, at 01:24

अंगिका रामायण / छठा सर्ग / भाग 9 / विजेता मुद्‍गलपुरी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गौरा के वियाह भेल शिव-महादेव संग
आबी केॅ कैलास शिव कुटिया छवैलकै।
आनन्द विहार में अनेक वर्ष बीत गेल
एक भी न पुत्र माता पारबती पैलके।
शिव जी के तेज लेली कैलन निहोरा देव
सब से प्रथम धरती ऊ तेज धैलकै।
अग्नि देव वायु के सहारा से शंभु के तेज
गंगा जी के कोख तक लानी पहुँचैलकै॥81॥

दोहा -

गंगा तीनों लोक में, नाशै सब टा पाप।
समरस तीनों काल में, भेटै तीनों पाप॥8॥

गंगा के रोॅ कोख में पलल शिव के रोॅ अंश
दिव्य रूपवान गुणवन्त पुत्र पैलकै।
जेकरोॅ कि पालन पोसन के दायित्व गंगा
छहो माता कृतिका के गोद में थम्हैलकै।
धरती अग्नि-वायु-गंगा निज पुत्र कही
सब मिली कार्तिक पे नेह बरसैलकै।
तब देवता के सब मनोरथ पूर्ण भेल
जब हुन्हीं ताड़का-असुर वध कैलकै॥82॥

फेरो विश्वामित्र राजा सगर के पुत्र कथा
यज्ञ कथा राम लक्षमण के सनैलका।
सगर के रहै धर्मपत्नी विदर्भ कन्याँ
केशिनी, दोसर रानी सुमति बतैलका।
दोनों रानी के रोॅ संग हिम के सिखर पर
एक सौ वरस जे सगर तप कैलका
उनका ऊपर भृगु देवता प्रसन्न भेल
तब साठा हजार पुत्रों के वर पैलका॥83॥

कहलन भृगुदेव, ई साठो हजार पुत्र
बड़ वलशाली होतोॅ जग जीती आनतोॅ।
ई साठो हजार पुत्र होतोॅ बड़ मनबढू
वल के घमण्ड में ऊ धरती के खानतोॅ।
जौने निरमैतोॅ सप्त सिन्धु निज भुज वलें
सगर के नाम से सागर नाम धरतोॅ।
वंश चलतोॅ तोहर बस एक पुत्र के रोॅ
जौने वंश में ही आवी हरि अवतरतोॅ॥84॥

अश्वमेह यज्ञ करवैलन सगर तब
इन्द्रदेव आवि निशिचर रूप धैलका।
यज्ञ के रोॅ अश्व के चौरावी केॅ भागल इन्द्र
देवराज खुद निशाचरी काज कैलका।
यज्ञ के रोॅ घोड़ा के खोजै लेली राजा सगर
अपनोॅ साठो हजार पुत्र के पठैलका।
ई साठो हजार पुत्र चप्पा-चप्पा खोजी ऐला
यज्ञ के रोॅ घोड़ा के पता न कहीं पैलका॥85॥

खोजैत-खोजैत ऐला कपिल मुनि के पास
कपिल मुनि के तहाँ ध्यान भंग कैलका।
देखलन निकट में अश्वमेह के रोॅ अश्व
अश्व चोर कपिल मुनि के ही बुझलका।
कैलन उपद्रव कपिल मुनि के रोॅ प्रति
क्रोध में कपिल मुनि नयन खोललका।
नयन के तेज से जरि गेल सगर पुत्र
मुनि साठो हजार के जारी छार कैलका॥86॥

दोहा -

अहंकार सिर बैठ केॅ, करवै अनुचित काज।
अरू करनी के फल मिलै, गिरै माथ पर गाज॥9॥

सगर के पुत्र वलशाली असमंज्य भेल
वल मद में जे उतपात बड़ी कैलका।
उनकर पुत्र भेल महाबली अंशुमान
जौने अश्वमेह के रोॅ घोड़ा खोजी लैलका।
सगर के वाद अधिकारी अंशुमान भेल
अंशुमान दायित्व दिलीप के थम्हैलका।
दिलीप के तेज से प्रतापी भागिरथ भेल
गंगा के मनावै लेली तप जौने कैलका॥87॥

विष्णु के चरण के धोवन छिक हिमगंगा
ब्रह्मदेव अपनोॅ कमण्डल में धैलकै।
वहाँ से निकलली तेॅ बड़ी वेगवाली भेली
महादेव अपनोॅ जटा में ओझरैलकै।
फेरो महोव के मनैलकाथ भागिरथ
शिव जी के जटा से गंगा के मुक्त कैलकै।
बिन्दु सरोवर में उतरली प्रथम गंगा
सात धार बनी सप्तपंथ अपनैलकै॥88॥

गंग के सातम धार भेली भगिरथी गंगा
देव-ऋषि-सिद्ध संत जनम जुराय छै।
देवता सिनी के आभूषण के प्रकाश पर
किरण परी के ‘सत-सूरज’ बुझाय छै।
साँप-सोंस-मछली-मेढ़क-घरियाल सिनी
जखनी उछाल मारै अजबे बुझाय छै।
ठाम-ठाम गंग के तरंग भी ध्वनित हुऐ
कल-कल, छल-छल मन के लुभाय छै॥89॥

कहीं बहै तेज धार, कखनों मद्मि बहै
कहीं टेढ़ वहै, कहीं धार छितराय छै।
ऊँच पर से कभी जों ढरकै ढालान पर
सहजें ऊ ध्वनि, प्रतिध्वनि बनि जाय छै।
अपनौ ही जल कभी अपने से टकरावै
हाथी के रौ गरजन जकतें बुझाय छै।
धरती के लेली भेली पतितपावनी गंगा
प्राणी के जे रोग-दुख-शोक के मिटाया छै॥90॥