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अंगिका रामायण / तेसरोॅ सर्ग / भाग 3 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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एहने भरम जब भेल छेलै सती के त
दक्ष-यज्ञ-योगानल में जरी क मरलै।
पक्षीराज गरूड़ के एहने भरम भेल
तब हुन्ही राम कथा सुनी क उबालै।
लंकिनी निशाचिरी के एहने भरम भेल
मार बिन भरम के भूत न उतरलै।
सब टा भरम काटै वाला छिक राम नाम
नाम जौने धारै से भरम में न परलै॥21॥

सुनोॅ भारद्वाज ऋषि भरम के हाल अब
भरम जे जनम-जनम भटकाय छै।
भरम में झूठ भी प्रतक्ष परमान लागै
भरम में साँच में भी शंसय बुझाय छै।
जौने चीज नै छै उहेॅ सामने प्रकट लागै
जे छै सामने में ऊ नजर में न आय छै।
माया आरो मोह जहाँ जेकरा गरसि गेल
भरम में डाली नाच बहुत नचाय छै॥22॥

कखनो त माथ चढ़ी काम-क्रोध-लोभ बोलै
कभी मोह बोलै आरो कभी मद बोलै छै।
कखनो जागी उठै छै मन बीच इरसा त
भूत नाखि तखनी कपाड़ चढ़ि बोलै छै।
कखनो त प्रेम बोलै, कखनो धरम बोलै
कखनो दोसर के कहल बात बोलै छै।
भनत ‘विजेता’ ई विचार करोॅ मने-मन
आदमी अपन बात कखनी क बोलै छै॥23॥

निगुन-सगुन में कोनो भेद-भाव कहाँ
प्रेम बस अगुन, सगुन बनी जाय छै।
अगुन सगुन छिक, सगुन अगुन छिक
जेना हिमखण्ड सें सलिल बनी जाय छै।
तेनाही अगुन राम, भगत के प्रेम बस
सगुन ऊ दशरथी राम बनी जाय छै।
वहेॅ दशरथी राम अगुन-सगुन सब
जिनका सादर शीश शंकर झुकाय छै॥24॥

जग विस्तारै वाला राम के प्रमाण करि
महादेव फेरू से श्री राम नाम गैलकै।
शिव के मुखोॅ से भ्रम-भंजक वचन सुनि
फेरू पारवती शीश सादर झुकैलकै।
ब्रह्म कोन कारण से मनुज के रूप भेला
अपनोॅ सवाल पारवती दोहरैलकै।
केना क अगुन राम सगुन स्वरूप भेल
शिव पारवती के ऊ कारण बतैलकै॥25॥

दोहा -

बूढ़ ज्ञान-बैराग जब, भगती दिखै जबान।
तखने से जानोॅ सुरू, धरम केर अवसान॥5॥

जब-जब धरम पाखण्ड के स्वरूप गहै
भगत के जब कि धरम भरमाय छै।
जब-जब नासतिक धरम के ढोंग कहि
भौतिक सुखोॅ के सही सुख बतलाय छै।
जब कि असंत जन संत के स्वरूप धरि
अलग-अलग गरूडम के चलाय छै।
तब-तब धरम सनातन के रक्षा लेली
आवी क प्रभू जी सद-धरम बताय छै॥26॥

धरम के चार पग, सत्य-तप-दान-दया
ज्ञान आरू भगती, दू पंथ कहलाय छै।
धरम के दू प्रकार श्रुत अेॅ चरित धर्म
ग्यान आरू दर्शन चरित बनी जाय छै।
धरम के चार अंग, वेदस्मृति सदाचार
आरो अनुकूलता सनातन कहाय छै।
सुनोॅ पारवती इहेॅ धरम, सनातन लेॅ
बेर-बेर प्रभु जी मनुज रूप पाय छै॥27॥

सूरज भी नाशवान, चन्द्रमा भी नाशवान
नवो-ग्रह, सब-टा नक्षत्र नाशवान छै।
धरती भी नाशवान, पवन भी नाशवान
गिरि-सर-सिन्धु सब कुछ नाशवान छै।
चित नाशवान आरो वित्त नाशवान जानोॅ
दुख नाशवान आरो सुख नाशवान छै।
एक ही धरम तीनों काल में अचल जानोॅ
पंथ-परधान यहाँ सब नाशवान छै॥28॥

राम के जनम के रोॅ कारण अनेकानेक
ओकरे में कारण विशेष बतलाय छी।
पहिने त दशो-अवतार के प्रणाम करि
राम अवतार के रोॅ कारण सुनाय छी।
केना क जगत के रोॅ धरम खलित भेल
केना निशिचर भेल वली ऊ बताय छी।
जग के कल्याण हेतु सुनोॅ सती-पारवती
राम अवतार के रहस्य हम गाय छी॥29॥

विष्णु के रोॅ द्वारपाल, ब्राह्मण के शाप बस
अगला जनम निशिचर योनी पैलकै।
जय आरू विजय निशाचर योनी में आवी
हिरनाक्ष-हिरण्यकशिपु नाम पैलकै।
दोनों निशिचर भ्राता जगत विरोधी भेल
घूमि-घूमि बड़ी उतपात ऊ मचैलकै।
एक केॅ रोॅ नाश लेॅ वराह अवतार भेल
दोसर के लेली नरसिंह रूप धैलकै॥30॥

दोहा -

मुद्गल जब भगवान में, बाढ़ै अति अह्लाद
वै में ‘प्र’ उपसर्ग लगि, बनै आप प्रह्लाद॥6॥