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अंगिका रामायण / दोसर सर्ग / भाग 6 / विजेता मुद्‍गलपुरी

जेना कि सुरूज देवता के आगमन होतें
रात अंधकार के स्वतह् मिब् िजाय छै।
वैसीना तोहर सब आतंक के अंत होत
जेना कि धरम कैने पाप घटि जाय छै।
वैसीना बिनाश तो अपन जानि लेॅ असुर
जेना कि औषध सब रोग के नसाय छै।
भल यदि चाहोॅ तब कार्तिक चरण गहोॅ
एकरा छोड़ी न आब दोसरोॅ उपाय छै॥51॥

सुनि क आकाशवाणी तारका दहलि गेल
देवता के फेरो ऊ कुवचन कहलकै।
गीदर के जकाँ व्यर्थ हुआ-हुआ बन्द करोॅ
देवता के धूर्त चालबाज ऊ कहलकै।
एक बूतरू ऊपर एतना गरब भेल
तारका के रोस देखि देव सब भागी गेल
बेर-बेर फेर दुरवचन कहलकै॥52॥

तारका असुर तब देवता समक्ष भेल
अविलम्ब एक दोसरा पे टूटि परलै।
तारका के शक्ति तब कार्तिक समझि गेल
एक दोसरा से बड़ी वीरता से लड़लै।
भाँति-भाँति आयुध के जमि क प्रयोग भेल
आरो निज-निज जोड़ी जानी सब भिड़लै।
पैदल से पैदल अेॅ रथी से रथी लड़ल
घोड़ा वाला सैनिक से घोड़ा वाला लड़लै॥53॥

युद्ध रूपी उत्सव में सैनिक कुलेल करै
वीर के रोॅ वीर गाथा चारण सुनाय छै।
विष से भरल वाण छैलै आसमान तक
टप-टप खरग शोणित टपकाय छै।
वज्र के प्रहार से निशाचर बिकल भेल
वाण के प्रहार से आकाश चीख जाय छै।
असुर भंजन चक्र चारो दिश घूमै जब
लागै ग्रह सूरज के चक्कर लगाय छै॥54॥

कटल असुर के रोॅ सिर लेने बाज गण
आसमान में चारो तरफ मंडरावै छै।
रथ हीन, शस्त्र हीन, घायल सैनिक सब
खून के रोॅ धार बीच डुबकी लगावै छै।
कटल सूढ़ोॅ में हाथी आरो भयंकर लागै
गेरू परवत लागै फब्वारा उड़ावै छै।
पैदल सैनिक खून-कीच पे पिछड़ि गिरै
सम्हरी क पौरूष अपन दिखलावै छै॥55॥

दोहा -

महा भयंकर देखि रण, हरसल गिद्ध समाज।
सब शव के धर धरि रखै, सिर लेॅ भागल बाज॥9॥

निशाचरि माया से समस्त अंधकार गेल
कार्तिक के वाण जे उजास भरि देलकै।
तारका-असुर के चारो तरफ घेरी-घेरी
घनघोर मेघ जकाँ वाण बरसैलकै।
जेना कि गरूड़ कोनो साँप के समूह देखि
लपकि-लपकि, खण्ड-खण्ड-खण्ड कैलकै।
वैसिना लपकि सब देवता समाज तब
आसुरी प्रहार सब रण्ड-भण्ड कैलके॥56॥

तारका असुर तब देव के प्रहार सब
आगिन के वाण मारि छार करि देलकै।
ऊपर से भयंकर-भयंकर वाण मारी
फेरो नाग फाँस के प्रहार करि देलकै।
तब सब साँप सब देव से लिपटि गेल
कुछ छन लेली त लाचार करि देलकै।
सब देव कार्तिक कुमार के सुमरलन,
फाँस दूर कार्तिक कुमार करि देलकै॥57॥

तब तारक असुर क्रोध से उवलि गेल
कार्तिक के दिश ऊ अपन रथ कैलकै।
तारका के ऐतें देखि इन्द्रदेव डरि गेल
आगू बढ़ि तारका कार्तिक के चेतैलकै।
युद्ध रूपि सागर में खुद के जहाज आरू
कार्तिक के कागज के नाव बतलैलकै।
देवता के सेना के ऊ पत्थर के बेड़ा कहै
एहन अनेक बेरा तारका डुबैलकै॥58॥

देवता के सेना के रोॅ रहल न चेत कुछ
आपस में अपने ही सेना से उलझलै।
पैदल सेनिक सब भेल असहाय तब
देखलक कार्तिक कुमार भी न सुझलै।
सब के व्यथित जब देखलकि छठी देवी
उनका निदान के जुगति एक सुझलै।
प्रकृति के तब छठा अंश में प्रवेश भेली
ई रहस्य तब देवगण भी न बुझलै॥59॥

छन में ही वायु के रोॅ थम्हल प्रभाव तब
चैन के रोॅ सॉस सब देव गण लेलकै।
आरोग्य के देवी छठी छन में प्रकट भेली
सब के रोॅ काया के कंचन करि देलकै।
वायु के प्रभाव जब थम्हल, तारकासुर-
तब अग्नि वाण के प्रहार करि देलकै।
अग्नि के प्रभाव अग्निदेव अंगिकार करि
असुर के सेना दिश खुद चलि देलकै॥60॥