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अंगिका रामायण / पाँचवा सर्ग / भाग 2 / विजेता मुद्‍गलपुरी

सब देव करलन विष्णु के निवेदन कि
जग हित लेली हरि नर रूप धरियै।
राजा दशरथ केॅ रहल पुत्र हेतु यज्ञ
उनकर पुत्र बनि प्रभु अवतरियै।
मनु-सतरूपा के रोॅ देलोॅ होलोॅ वरदान
नर रूप धरि क वचन पूरा करियै।
संत के रोॅ त्राण, असुरोॅ के अवसान, आरू-
युग-निरमान लेॅ मनुज रूप धरियै॥11॥

कोन देवता के संग कोन व्यवहार भेल
बारी-बारी बस देव हरि के सुनैलकै।
सब देवगण के व्यथित देखि ब्रह्मदेव
हरि अवतरै लेली असुति गैलकै।
कहलन हरि हम धरब मनुज रूप
अटल भरोसा तब देवगण पैलकै।
एतना कहि केॅ हरि अंतरधियान भेल
सब देवगण जय-जय-जय कैलकै॥12॥

मंत्र के रोॅ ज्ञाता शृंगी यज्ञ पुरोहित भेल
यज्ञ भगवान के प्रकट हुन्ही कैलका।
श्याम रूप धारि यज्ञ देवता प्रकट भेल
यज्ञ-फल सोना के थारी में धरि लैलका।
दोनो हाथ जोरी क विनित राजा दशरथ
यज्ञ-भगवान के रोॅ असतुति गैलका।
शृंगी के निवेदन स्वीकारी यज्ञ-देव तब
यज्ञ के रोॅ फल दशरथ के थ-हैलका॥13॥

कहलन एकरा से सब दुख नाश होतोॅ,
होतोॅ मनोकामना पुरन, फल मिलतोॅ।
तीनों रानी के रोॅ अब कोख हरियर होतोॅ
अवध में अनुपम चार फूल खिलतोॅ।
यज्ञ के रोॅ फल होतोॅ विष्णु के समान पुत्र
जिनका से जग में अपार यश मिलतोॅ।
जगत से सब आसुरी वृति के नाश होतोॅ
रघुकुल रीत निज प्रण से न हिलतोॅ॥14॥

यज्ञ-भगवान तब अंतर-धियान भेल
राजा दशरथ अनमोल निधि पैलका।
यज्ञ के रोॅ फल लेने कौशल्या समीप गेला
खीर के रोॅ आधा भाग कौशल्या के देलका।
आधा के रोॅ आधा भाग देलका सुमित्रा जी के
शेष भाग के भी फेरू आधा करि देलका।
शेष भाग के रोॅ आधा कैकेयी रानी के देॅ केॅ
बचल से फेरोॅ से सुमित्रा जी के देलका॥15॥

सोरठा -

हरसल तीनों माय, जब पैलन फल यज्ञ के।
गेल कोख हरियाय, आवि वसल आनन्द घर॥1॥

जब तीनों रानी गर्भ धारण करलकी त
भूप सिनी ऋषि शृंगी के रोॅ यश गैलका।
अलग-अलग सब ऋषि शृंगी से मिली क
अलग-अलग पहचान ऊ बढ़ैलका।
अपन-अपन देश में चरण राखै लेली
अलग-अलग अनुरोध सब कैलका।
सहज स्वभाव मंत्र के रोॅ महारथ शृंगी
सहजहि सहमति सब से जतैलका॥16॥

राजा-रजवारा के निवेदन स्वीकारी शृंगी
देशे-देशे, गामे-गाम घूमि यज्ञ कैलका।
गंगा के किनारे पे बोलैलोॅ गेल शृंगी ऋषि
वहाँ पे निषाद राज यज्ञ करवैलका।
शृंगी के सम्मान में बसैलोॅ गेल एक गाँव
जेकरोॅ कि नाम शृंगवेरपुर धैलका।
फेरो यज्ञ हेतु शृंगी गेल परीक्षितगढ़
जहाँ पर आवी वृष्टि यज्ञ करवैलका॥17॥

गंगा भागीरथी के किनारे फेरो यज्ञ भेल
जौने थल के रोॅ ‘शृंगीराम’ नाम धैलका।
अलकनन्दा पहाड़ पर गेला शृंगी ऋषि
जहाँ कि अगस्त ऋषि उनका बोलैलका।
उनके पुरोहित्य में भेल तहाँ विष्णु-यज्ञ
विष्णु जी प्रकट भेल यज्ञ भाग पैलका।
शृंगी आरो शान्ता दोनों ही नैमिशाण्य ऐला
तीरथ के जौने महातीरथ बनैलका॥18॥

चाँदपुर <ref>मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़</ref> शृंगी ऋषि विभांडक संग गेला
सोयतकला <ref>शाजापुर, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़</ref> में आबी यज्ञ करवैलका।
सोहोवा <ref>छत्तीसगढ़</ref> में शृंगी ऋषि यज्ञ के रोॅ जल लेॅ केॅ
एक महानदी के प्रकट हुन्हीं कैलका।
बेहट <ref>ग्वालियर</ref> के गुफा भेल शृंगी के रोॅ तप थल
उज्जैन में आवी हुन्हीं वृष्टि यज्ञ कैलका।
‘भड़वा अ’ वरवा <ref>झाँसी</ref> जे पुत्र यज्ञ थल भेल
मंदसौर <ref>मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़</ref> आबी कुछ समय बितैलका॥19॥

नर्मदा के तट पर शृंगी आरो शान्ता दोनोॅ
कुछ काल तलक ठहरि तप कैलका।
कुछ काल आवि केॅ गोदाबरी के तट पर
पिता विभांडक जी के संग तप कैलका।
तापसबाड़ी <ref>जलगाँव, महाराष्ट्र</ref> में तप कैलकाथ शृंगी ऋषि
फेरो सूखी नदी <ref>जलगाँव, महाराष्ट्र</ref> तट पर तप कैलका।
आषटी <ref>नांदेड़, महाराष्ट्र</ref> में अनसिंग <ref>वासिम, महाराष्ट्र</ref> में करैलकाथ यज्ञ
कारला <ref>यवतमाल, महाराष्ट्र</ref> में आवी क समाधि हुन्हीं धैलका॥20॥

शब्दार्थ
<references/>