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अंगिका रामायण / पाँचवा सर्ग / भाग 7 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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भोजन करैत जब बोलवै छै महाराज
रामचन्द्र आगू आवी फेरो भागी जाय छै।
पकड़ै लेॅ चाहै जब दौड़ी केॅ कौशल्या माता
नुकाछिपी करै माता पकड़ेॅ न पाय छै।
तुरते नुकी केॅ फेरो तुरते प्रकट भेल
पकड़ै लेॅ चाहै तब तुरते पराय छै।
हारी थकी बैठी गेली माता जब असोरा पे
दौड़ी रामचन्द्र आवी कोरा लागी जाय छै॥61॥

फेरो उठि भागी गल, खोजै माता कौशल्या कि
कहाँ गेल रामचन्द्र भोजनो न कैलकै।
खोजी ऐली घर के अगारी पिछुआरी सब
झाँकि केॅ दुआरी पर सगरो चितैलकै।
दासी के भेजल गेल गुरू के दुआरी दिश
रामचन्द्र जी के बाँह पकड़ी केॅ लैलकै।
हलसी केॅ गोदी में बिठावी केॅ कौशल्या माता
चन्द्र के निहुछि रामचन्द्र के खिलैलकै॥।62॥

नित माता कौशल्या के ऐंगना सुहान लागै
जहाँ जगदीश शिशु बनि झूलै पलना।
सब माता से शौभाग्य शालिनी कौशल्या माता
जगत पिता के दुलरावै कहि ललना।
तहाँ तीनों लोक के रॉे सब सुख बास करै
परम मगन जहाँ खेलै चारो चेंगना।
शिव जी के संग-संग जुटल भुसुण्डी बाबा
धन्य-धन्य भेल माता कौशल्या के ऐंगना॥63॥

दोहा -

आवि अवध में बसि रहल, शिव-भुसुण्डि महराज।
राम दरस सुख सामनें, बिसरल सब-टा काज॥9॥

बोलल भुसुण्डी महाराज, ‘हे विहगपति,
जब जगदीश्वर मनुष्य रूप धैलका।
उनका दरस लेली जुमला जगतगुरू
आबी महादेव हमरा भी संग कैलका।
शिव जी के संग जब आँगन में ऐलौं हम
बूझि गेला रामचन्द्र देखि मुसकैलका।
हम पाँच बरस अवध में ही रहि गेलौं
मोहक स्वरूप राम हमरा लुभैलका’॥64॥

इष्टदेव बाल रूप राम के दरस भेल
दरसन पावी निज नयन जुरावै छी।
प्रभु के सानिध्य लेली छोट सन काग बनि
ऐंगने में घुमि निश-वासर बितावै छी।
जहाँ-जहाँ घूमै राम तहाँ संग-साथ हम
फुदकि-फुदकि नित आनन्द मनावै छी।
दुनियाँ के सकल तीरथ एक ठाम भेल
राम के सानिध्य में ही सब सुख पावै छी॥65॥

छत के मुंडेर पे भुसुण्डी महाराज तब
एक टक बैठि केॅ निहारै प्रभु राम के।
राम के निहारतें अजब अनुभूति भेल
लागल दरस भेल, जनु चारो धाम के।
राम के दरस भेल, जनम सफल भेल
थकल न नैन देखि शोभा अभिराम के।
दरसन सुख से भुसुण्डी धन्य-धन्य भेल
देखते रहै लेॅ चाहै शोभा-सुख-धाम के॥66॥

मरकत-मणि के समान प्रभु रामचन्द्र
रूप कामदेव सन अधिक सोहाय छै।
सोना के रोॅ करधनि मणि से जरल आरू
पग के रोॅ घुंघरू सहजे बजि जाय छै।
तोतरैलोॅ बोल ओठ लागै तिलकोर सन
आगू के रोॅ दाँत अद्भुत शोभा पाय छै।
घुंघरैलोॅं बाल गाल खिलल गुलाब सब
कमल-नयन बड़ी मन के लुभाय छै॥67॥

उगतें सुरूज सन शोभित लिलार लागै
चन्दन के रेख कुछ कहलोॅ न जाय छै।
रहि-रहि रामलला एन्होॅ किलकारी मारै।
ऐंगना के कोना-कोना अति हरसाय छै।
अपने ही छाँह देखि भंगिमा बनावै हरि
छाँही के दौड़ावै लेली खुद दौड़ी जाय छै।
कखनो त बालू-मिट्टी-धूल के रोॅ संग खेलै
जगत रचावै बाला घरको रचाय छै॥68॥

कुण्डलिया -

काक भुसुण्डी जानला, राम अनादि अनन्त।
जे मुनि जन के मन बसै, जिनका ध्यावै संत।
जिनका ध्यानै संत, राम जे जग निरमावै।
नेति-नेति-नित वेद कहै पर पार न पावै।
समझै सगुण-सकाम-सकर्मक सठ पाखण्डी।
जानै राम रहस्य विजेता काक भुसुण्डी॥1॥

दोहा -

राम जन्म उत्सव कथा, शंकर करै बखान।
जौन भाँति लीला करै, चिदानन्द भगवान॥10॥

रामजी भुसुण्डी बीच नयन संवाद भेल
रामजी बोलैलका भुसुण्डी जी उतरलै।
फुदकि-फुदकि काग आगू दिश बढ़ल तेॅ
रामजी माखन-रोटी उनका बढ़ैलकै।
फुदकि भुसुण्डी जी बढ़ल कुछ और आगे
तब राम रोटी निज मुँह से लगैलकै।
फेरो से बढ़ावै रोटी, फेरो निज मुख राखै
ऐसियें भुसुण्डी जी के बड़ी ललचैलकै॥69॥

हाथ से माखन-रोटी बेर-बेर खसि परै
फेरो से उठावी राम मुँह से लगाय छै।
अवध के रज-कण माखन रोटी के संग
पहिने से अधिक पवित्र बनि जाय छै।
माखन रोटी में धूल लागल अवध के रोॅ
जेकरोॅ कि स्वाद कुछ कहलोॅ न जाय छै।
कौशल्या के ऐंगना में आनन्द के ओर कहाँ
जहाँ चारो लल्ला हँसै-खेलै आरो खाय छै॥70॥