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अंगिका रामायण / प्रथम सर्ग / भाग 2 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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घरे-घर राम जी के कथा बिसतारै वाला
संत तुलसी के हम चरण मनाय छी।
उनकर कृति रामचरित के चित धरी
मानस के मानस तलक पहुँचाय छी।
हुनकोॅ प्रभाव, भगवती के आदेश मानी
हनुमत के कृपा से राम कथा गाय छी।
सब से प्रथम हम शिव के चरित लिखि
भगती में बोरी भगवती के सुनाय छी॥11॥

पहिलोॅ-पहिल शिव रामचन्द्र जी के कथा
जानी क सुसमय भवानी के सुनैलकै।
वाल औ’ विवाह लीला, वनलीला, रन लीला
राज लीला के रहस्य उनका बतैलकै।
पहिने कही क सती मोह के कथा महेश
परिणाम मोह के रोॅ नाश बतलैलकै।
वहेॅ सती फेरो से हिमांचल के घर आवि
पर्वत के सुता पारवती नाम पैलकै॥12॥

पावन प्रयाग राज, ऐला ऋषि भारद्वाज
वहीं भरी माघ मास मकर नहैलका।
ऋषि याज्ञवलक वखानै वहाँ राम कथा।
बूझि अधिकारी भारद्वाज के सुनैलका।
संगम किनारे भेल संत के समागम त
दोनो मिली मानस मंदाकिनी बहैलका।
एक त त्रिवेणी, दूजा संत के समागम अेॅ
तेसर प्रयाग महासंगम कहैलका॥13॥

कहै याज्ञवलक जी सुनोॅ ऋषि भारद्वाज
जे कथा महेश पारवती के सुनैलकै।
से महेश के रोॅ कथा अजब निराला सुनोॅ
शिव महायोगी जौने जोग सिखलैलकै।
योग के रोॅ आगिन केना क जांरै काम के छै
महायोगी शिव काम जारी क देखैलकै।
काम के जारी क हिय राम के राखै के लेली
जग के जोगी के उतजोग बतलैलकै॥14॥

पारवती ही पुरूब जनम में सती छेली
राजा दक्ष के यहाँ जनम जौने पैलकी।
परम हठीली सती शिव के स्वीकारी पति
सुख के बिसारी घनघोर तप कैलकी।
कभी फल के अहार, कभी रहि निराहार
कभी बिन जल के भी वरस बितैलकी।
शिव पर राजी मन करी जुगती जतन
तप वलेॅ सती महादेव पति पैलकी॥15॥

सोरठा -

आवै छला महेश, ऋषि अगस्त के पास से।
है सौभाग विशषे, दरस भेल तब राम के॥1॥

सती संग-संग जब आवैत महेश रहै
राह में देखलका जगतपति राम के।
राम जे कि सीता के वियोगेॅ भटकैत रहै
मिली गेल नैन तब शिव निसकाम से।
मिलते महेश कहै ‘धन्य तो कृपानिधान
उबरैत जग छै सदैव जौने नाम से।’
सती के मनोॅ में आवी शंसय विराजी गेल
करेॅ लगली कुतर्क शंकर अकाम सेॅ॥16॥

शिव के कहल पर सती अविश्वास करी
राम के परीक्षा लेली सीता रूप धैलकै।
सीता के स्वरूप देखि लखन भ्रमित भेल
दक्ष नन्दनी कही प्रणाम राम कैलकै।
रूकी क कुशल छेम पूछेॅ जब लागल तेॅ
सती सहमली कुछ उत्तर न देलकै।
फेरो राम पुछलक-माते! महादेव कहाँ?
सती तब शिव दिश रूख करी लेलकै॥17॥

शिव के समक्ष आवी, झूठ बोली गेली सती
कहलकि कोनो ने परीक्षा हम लेलियै।
अपने प्रणाम जेना कैने रहौ राम जी के
जाय क ओनाही क प्रणाम करी लेलियै।
अपने के कहल में झूठ के दरेश नै छै
राम जग रमता स्वीकार करी लेलियै
राम के दरस भेल आतमा तिरिप्त भेल
दरसन सुख हम चैन भरी लेलियै॥18॥

कोन विधि राम के परीक्षा सती लेने छेली
महादेव मनेमन ध्यान करी लेलकै।
एक-टा ई झूठ नासी देलक विश्वास सब
सती महाछली पहचान करी लेलकै।
सीता के स्वरूप धरि माता के सतुल्य भेली
शिव मनेमन अनुमान करी लेलकै।
ई तनोॅ में शिव-सती फेरो एक ठाम कहाँ?
महादेव मन में परन करी लेलकै॥19॥

जखने से राम से परीक्षा लेॅ कॅ लौटली छी
तखने से शंकर बेरूख सन भेल छै।
शिव के बेरूखपन बुझलकि महासती
एकदम मन उख-बीखा सन भेल छै।
बेर-बेर शिव से करी क हठ सती पूछै
अजका व्योहार कैन्हॅे तीख सन भेल छै।
सच-सच बात कहि देलन महेश तब
जे कि नारी हठ लेली सीख सन भेल छै॥20॥

दोहा -

गलती जों झाँपेॅ चहोॅ, होथौं गलत अनेक।
मुद्गल सब तर खोलि देॅ, अपनोॅ गलती एक॥3॥