भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका रामायण / प्रथम सर्ग / भाग 6 / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:46, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सशंकित मन काम गेल महादेव पास
बसन्त स्वरूप तहाँ नव निरमैलकै।
डाले डाल नया-नया फूल-पात लदि गेल
मोहक स्वरूप रचि-रचि क बनैलकै।
सब के रोॅ प्रेम रति भाव में प्रकट भेल
निज-निज जोड़ी के अधर पान कैलकै।
भ्रमर अपनी प्रिया भ्रमरी के संग भेल
एक ही कुसुम में मधुप पान कैलकै॥51॥

शिव के रोॅ ध्यान भंग करै लेली कामदेव
पुष्प के रोॅ वाण के प्रहार करी देलकै।
आरो कामदेव शिव कोप से बचै के लेली
एकतरूवर के रोॅ आर करी लेलकै।
वाण लगते ही ध्यान भंग भेल शंकर के
काम जनु राम के शिकार करी लेलकै।
क्रोध में खुलल महादेव के तेसर नेत्र
काम के रोॅ जारी शिव छार करी देलकै॥53॥

मदन दहन सुनि देवता दहलि गेल
शिव के रोॅ कोप सब के मनोॅ में वसलै।
पति के मरण जब सुनलकि रति तब
कटल बिरिछ सन धरती पे खसलै।
बेर-बेर, उठै- गिरै-बजरै-चिग्घा मारै
देवता के रचल प्रपंच बीच फँसलै।
मदन दहन सुनी कानै कामी नर-नारी
बनी निसकाम सब योगि-यति हँसलै॥53॥

कौने अभिसारिका में हिम्मत भरत अब
कौने जैतै मंजिल तलक पहुँचावै लेॅ?
लोक-लाज के रोॅ अब बंधन तोरत कौने
कौने जैतै प्रेमिका के प्रेमी से मिलावै लेॅ?
दामपत्य प्रेम के प्रगाढ़ अब के करत
कौने ऐतै जिन्दगी के सरस बनावै लेॅ?
केना की करत अब रत कला के प्रवीण
ब्रह्मा के ई मैथुनी जगत के बचावै लेॅ?॥54॥

शिव क समक्ष रति धरती पे लोटै जेना
बिच्छू के हजार डंक अंग-अंग परलै।
पति के रोॅ राख के बटोरी क बाँहोॅ में भरी
धरि-धरि कानै बड़ी उठलै बजरलै।
गलती स्वीकार करि पति के रोॅ प्राण लेली
बार-बार शिव के रोॅ चरण में परलै।
रति के रोॅ क्रन्दन से करूणा पसरि गेल
करूणा निधान शिव करूणा से भरलै॥55॥

रति के विलाप सुनि यति महादेव शिव
करूणा पति सुहागवती करी देलकै।
देॅ केॅ वरदान शिव करूणा निधान तब
रति-पति में फेरू से प्राण भीरी देलकै।
जेना जग व्यापी राम, शंकर जेना अकाम
तेना काम-काम, ठाम-ठाम करी देलकै।
जौने हिय नाहीं राम, तहाँ बसी गेल काम
आशुतोष काम के अमर करी देलकै॥56॥

जे जगह कामदेव अंग से अनंग भेल
से जगह जनपद अंग कहलाय छै।
इहेॅ महादेव के समाधि असथल छिक
साधना के सिद्ध-थल संत के लुभाय छै।
यहाँ सती के नयन-हस्त-कटि पूजित छै
याचक के जौने मनोकामना पुराय छै।
यहेॅ सिद्ध-थल छिक सती के रोॅ चिता भूमि
जहाँ सब शोक-दुख-पाप हरि जाय छै॥57॥

जाहि दिन रति-पति मदन अनंग भेल
रमी गेल काम सब प्राणी के रोॅ अंग में।
लोग दौड़ी-दाड़ी आवै, सब काम गुण गावै
काम के रोॅ भसम लगावै अंग-अंग में।
सब झूमि-झूमि नाचै, काम के चरित बाँचै
भसम उड़ावै भरि परम उमंग में।
सब लोग धन्य-धन्य, चित अधिक प्रसन्न
जोगी जोगरा बनल जोगिनी के संग में॥58॥

दानव-असुर-नर-किन्नर-गंर्धव सब
राम से बिछुरि गेल, काम दिश भागलै।
ऐलै देश अंग जहाँ मदन अनंग भेल
सब के रोॅ अंग-अंग रति-पति जागलै।
योगी-यति जब आवै, कामाध्यातम पढ़ावै
लोग योग भोग के संयोग करेॅ लागलै।
देखि काम के रोॅ राज, दूर भागी गेल लाज
कामी के समाज देखी, अजगुत लागलै॥59॥

देव वधु आवी गेली हाथ में गुलाल लेने
देवता के गाल लाल-लाल करी देलकै।
रंग कही भंग, कही रंग में भी भंग देखोॅ
अंग के रोॅ अंग के निहाल करी देलके।
अविर गुलाल लेने ढोलक पे ताल देने
झाल करताल त कमाल करी देलकेै।
असुर समाज बूझि काम के रोॅ राज तब
छेड़-छाड़ करी क बवाल करी देलकै॥60॥