भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगुलीमाल / गोविन्द कुमार 'गुंजन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहते है
कोई उन्मादी हत्यारा
अंगुलीमाल हुआ था
बुद्ध के जमाने में

जिसकी भी हत्या करता
बतौर गिनती उसकी एक उंगली काटकर
वह गूथ लेता था अपनी माला में

उसकी माला
उसके घुटनों तक पहुंच चुकी थी
मगर अंगुलीमाल के भीतर
थोड़ा भी कम नहीं हुआ था
हत्याओं का उन्माद

उंगलियाँ गिनती के काम आती है
उंगलियाँॅ ही सारे गणितों को जन्माती है
वह भी उंगलियों से गिन रहा था
एक एक हत्या

मैं चौकता हूँ
एक उन्मादी हत्यारा तक रखता था
एक एक हत्या का हिसाब
और हम
अपनी ही सभ्यता के हत्यारे
करते हैं बेहिसाब हत्याएॅँ

मारे जाते हैं विश्वास
कुचल दिये जाते है प्रेम
सजाते हैं संबंधों की लाशें

मुर्दाघरों में
पैदा होते है बच्चे
जहां मार दी जाती है किलकारियां,
गे हूँ की बालियों और गुलाब के कंठ में
जहर डालने के बाद
घोंट दिये जाते है नदियों के गले

जलते हुए जंगलों में
नहीं बचने देते
कोई बोधि वृक्ष
किसी बुद्ध के लिए

हवाओं में भरते हैं
बारूद की गंध,
और दीवालियॉंँ मनाते है

इतनी हत्याओं का
कोई हिसाब नहीं
अब जिंदा रहने देगे
शायद कोई ख्वाब नहीं

अंगुलिमाल पागल था
उन्मादी भी था बहुत
मगर कम से कम,

उसकी उंगलियों पर तो था सारा हिसाब हत्याओं का,
हम जैसा तो नहीं था
वह कम से कम