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अंगूठा ही तो कटा है / राजकिशोर सिंह

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दर्द की आहें
सताती नहीं
मेरी व्याध् िमें
मेरे दिल से
मगर
पथ्य की कमियों की
एक टीस उठती मन के
साहिल से
टीस के पफपफोले
कुरेदे जाते
इन जवाबों से
और पिफर जिन्दगी

दर-बदर होती
चेहरे पर लगे
झूठे नकाबों से
पिफर भी
तन थमता है
मर्ज से
मन थामता हूँ
कर्ज से
लेकिन कर्ज का कटोरा
देऽकर
महाजन मांगता
अंगूठे का निशान
तैयार था
देने को अंगूठे की पहचान
मगर
अंगूठा ही तो कटा है
कई टुकड़ों में बँटा है।