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अंग-सपूत / प्रदीप प्रभात - अवतरण इतिहास
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Lalit Kumar: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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|रचनाकार=प्रदीप प्रभात<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatAngikaRachna}}<br />
<poem><br />
हम्मेॅ अंग भूमि के वीर जवान,<br />
उच्चोॅ हरदम्मेॅ हमरोॅ शान।<br />
जानोॅ सेॅ बढ़लोॅ हमरोॅ हिन्दुस्तान,<br />
गाय छी हम्मेॅ देश प्रेम के गान।<br />
<br />
हमरा है तिरंगा पेॅ अभिमान<br />
हेकरै पर छै तन-मन धन कुरबान।<br />
वीर सिद्धो-कान्होॅ बड़ा महान,<br />
हेकरोॅ छेलै अलगें शान।<br />
<br />
काम करलकै हैरत-अंगेज,<br />
जबेॅ एक समय रहै अंग्रेज।<br />
अंग्रेजों के छेलें दुश्मन पक्का,<br />
छुड़ाय देलकै होकरोॅ छक्का।<br />
<br />
30 जून 1855 के फुँकलकै विगुल,<br />
अंग्रेजोॅ बीच हुवेॅ लागलै शोरगुल।<br />
भागलै आपनोॅ जान बचाय,<br />
फूलोॅ-झानोॅ जबेॅ कुल्हाड़ी चमकाय।<br />
</poem></div>
Lalit Kumar