भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंग अंग चंदन वन / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन }} <poem> एक नाम अधरों पर आया अंग-अंग...)
(कोई अंतर नहीं)

18:50, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण

एक नाम अधरों पर आया
अंग-अंग चन्दन
वन हो गया।

बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
साँसों में सूरज उग आए
आँखों में ऋतुपति के छन्द
तैरने लगे
मन सारा
नील गगन हो गया।

गन्ध गुंथी बाहों का घेरा
जैसे मधुमास का सवेरा
फूलों की भाषा में
देह बोलने लगी
पूजा का
एक जतन हो गया।


पानी पर खींचकर लकींरें
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
आसपास
अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
अग्निबिन्दु
और सघन हो गया!