अंग अनंग तहीं कछु संभु सुकेहरि लंक गयन्दहिं घेरे।
भौंह कमान तहीं मृग लोचन खंजन क्यों न चुगै तिलि नेरे॥
है कच राहु तहीं उदै इंदु सुकीर के बिम्बन चोंचन मेरे।
कोऊ न काहू सों रोस करै सुडरै डर साह अकबर तेरे॥
अंग अनंग तहीं कछु संभु सुकेहरि लंक गयन्दहिं घेरे।
भौंह कमान तहीं मृग लोचन खंजन क्यों न चुगै तिलि नेरे॥
है कच राहु तहीं उदै इंदु सुकीर के बिम्बन चोंचन मेरे।
कोऊ न काहू सों रोस करै सुडरै डर साह अकबर तेरे॥