http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97_%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A3_/_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97_1_/_%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8&feed=atom&action=history
अंग दर्पण / भाग 1 / रसलीन - अवतरण इतिहास
2024-03-28T11:58:35Z
विकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहास
MediaWiki 1.24.1
http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97_%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A3_/_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97_1_/_%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%A8&diff=207990&oldid=prev
Sharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=अंग दर्पण /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
2016-07-21T23:18:29Z
<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=अंग दर्पण /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=रसलीन<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=अंग दर्पण / रसलीन<br />
}}<br />
{{KKCatDoha}}<br />
{{KKCatBrajBhashaRachna}}<br />
<poem><br />
वार वर्णन<br />
<br />
मोर पच्छ जो सिर चढ़ै बारन तें अधिकाय।<br />
सहस चखन लखि धनि कचन परे मान छिन पाय।।3।।<br />
<br />
बेनी-वर्णन<br />
<br />
बेनी बधि इक ठौर ह्वै अहि सम राखत ठौर।<br />
बिथुरि चँवरि से कच करत मन बिथोरि धरि चौंर।।4।।<br />
<br />
जे हरि रह त्रिलोक मों कालीनाथ कहाइ।<br />
ते तुव बेनी के डसे सब जग हँसे बनाइ।।5।।<br />
<br />
भनत न कैसैहू बनै या बेनी को दाय।<br />
तुव पीछे गहि जगत के पीछे परी बनाय।।6।।<br />
<br />
मैमद-वर्णन<br />
<br />
मानिक मनि ये नहिं जरे मैमद झबियन लाय।<br />
फनि तजि मनि पीछे परे तुव बैनी के आय।।7।।<br />
<br />
मैमद झबियन मुकुत लखि यह आयो जिय जागि।<br />
सखि हित पीछे राहु के नखत रहे हैं लागि।।8।।<br />
<br />
जूरा-वर्णन<br />
<br />
चंदमुखी जूरो चितै चित लीन्हों पहिचानि।<br />
सीस उठायौ है तिमिर ससि कौं पीछे जानि।।9।।<br />
<br />
यो बाँधति जूरो तिया पटियन को चिकनाय।<br />
पाग चिकनिया सीस की यातें रही लजाय।।10।।<br />
<br />
पाटीयुत माँग-वर्णन<br />
<br />
माँग लगी ते बधिक तिय पाटी टाटी ओट।<br />
दोऊ दृग पच्छीन को हनत एक ही चोट।।11।।<br />
<br />
अरुन माँग पटिया नहीं मदन जगत को मारि।<br />
असित फरी पै लै धरो रकत भरी तरवारि।।12।।<br />
</poem></div>
Sharda suman