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अंजान साए पीछे मैं चलता चला गया / मोहित नेगी मुंतज़िर

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अंजान साए पीछे मैं चलता चला गया।
जीवन मिरा तभी से बदलता चला गया।

मुझसे कहा किसी ने तपो निखरो सोने सा
मेहनत की तब से आग में जलता चला गया।

किसने कहा के अपने पन में कोई दम नहीं
अपनों के प्यार में ही मैं गलता चला गया।

आये थे दुख कभी मिरा लेने को जायज़ा
बस मेरा होश तब से सम्भलता चला गया।

सीखी जब एक पेड़ ने झुक कर विनम्रता
वो पेड़ उसी वक़्त से फलता चला गया।