भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंटरियै चढ़ि चला हो दरवाजा / बघेली

Kavita Kosh से
Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 20 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बघेली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatBag...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अंटरियै चढ़ि चला हो दरवाजा मा बोलै मोर
ये प्यारे वा दिन कउन थे जादिन कीन्ह्या प्रीति
दुख दै के न्यरे भया कउन गांव की रीति
अंटरियै चढ़ि चला हो दरवाजा मां बोलै मोर