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अंतर्विरोध (1) / धर्मेन्द्र चतुर्वेदी


श्वेत के साथ हुआ
कृष्ण का प्रादुर्भाव ;
जीवन के साथ मौत का ,
स्वागत के साथ विदा का ;

'असत्य' का होना भी
उतना ही सत्य है,
जितना कि सत्य का होना ;

इस तरह
कुछ भी नहीं रह जाता
दुनिया का सत्य ;
शाश्वत हैं तो केवल
अंतर्विरोध ,
जिनके बूते
बनती है दुनिया
बदलती है ,
और फिर से चलती है |