भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतर क्यों? / असंगघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे विप्रवर!
तू सदियों से
हमारी पीठ पर
कोड़े बरसा
खाल उधेड़ भूँसा भरता रहा

हम भी
तेरी सेवा में रह
मरे जानवर ढो
खाल उतार
चरण पादुकाएँ बनाते रहे,

चमड़ा उतारा
हम दोनों ने ही
फिर भी हम अकेले ही चमार,
और तू मंगता बामन
क्यों बना रहा?