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अंतस् / विमलेश शर्मा

तुम आना
जैसे तपन के बाद
बादल धरती की सुध लेते हैं
सूर्य किरण जैसे उठाती है
धरती से आसमां के पोर-पोर को
स्पर्श भर से
जैसे माँ का हाथ
माथे पर से उतरवा लेता है बोझ
और चेहरे की पीडा को
जैसे पुरवाई
भर देती है साँस-साँस में
हरेपन को
तुम आना
सजना माँग पर
सुख समय की ही तरह

तुम आना
एक दिन
सिर्फ़ मेरे लिए!