Last modified on 26 अगस्त 2017, at 13:53

अंतहीन / स्वाति मेलकानी

तुम्हारा न होना
हो सकता मेरी उदासी का कारण
पर
मेरी असल उदासी की जड़े
शायद अतीत में गहरी धँसी हैं।
तुम्हारे आने से पहले भी
कई उदास क्षण
मैंने जिये हैं अकेले
पर उस समय
उन सारे क्षणों को
कविता की शक्ल में ढालकर
मैं छूट जाती थी।...
तुम्हारा साथ पाकर
जो पूर्णता मैंने पाई
उसके अपूर्ण रह जाने का
अहसास होने में
लग ही गया कुछ इतना समय
जितना लग जाता है
एक स्वप्न का अन्त होने में...
पर
हो चुके अन्त के बाद
शेष को समेटती
’मैं’
आज फिर हूँ कविता की शरण मंे...
तुम्हारी निजता से मिले
क्षणों की स्मृति
सुखद है
किन्तु
जीवन और भी है
चंद क्षणों के आगे
अंतहीन...