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अंतिम प्रणाम लो हे अनंत पथ के यात्री! / गुलाब खंडेलवाल

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पद्मभूषण श्री सीताराम सेकसरिया

अंतिम प्रणाम लो हे अनंत पथ के यात्री!
हम चरणों पर शब्दों की भेंट चढ़ाते हैं
आती है ज्यों ही याद तुम्हारी निर्मल छवि
अक्षर-अक्षर बनकर गुलाब खिल जाते हैं
हे चिर-अजातरिपु! सेवालीन कर्मयोगी!
सबको प्रिय, सबके लिए सदैव शुभाकांक्षी
चन्दन की कलम शहद में डुबो-डुबोकर भी
हम नाम तुम्हारा लिखने में सकुचाते हैं