अंदाज़ से तो साफ़ हिक़ारत सी लगे है
कैसे यक़ीन कर लूँ मुहब्बत सी लगे है
हर रोज़ मेरे ग़म को हवा मिलती है जनाब
इक शख्स की ये मुझपे इनायत सी लगे है
पढ़कर के जिसे जान सी निकले हरेक बार
कहने को तो ये चीज़ तेरे ख़त सी लगे है
लगती है खिलोने की तरह सबको मुहब्बत
दिल तोड़ना भी एक रवायत सी लगे है
उनके मिज़ाज को न समझ पाया मैं कभी
मेरी हरेक बात शिक़ायत सी लगे है
अब उनसे क्या कहें 'मनु' जाकर के दिल की बात
जिनको हमारे नाम से नफरत सी लगे है