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अंदाज़ / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

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वो जो अंदाज़ है उसका क़रीब आने का
धीरे-धीरे क़रीब और क़रीब और क़रीब
हौले-हौले से मेरा गीत गुनगुनाने का,
फिर तसव्वुर मंे चुपचाप बिखर जाने का
जैसे यकलख़्त कोई गुल खिले वीराने में
दिल के मयख़ाने में शम’अ जरा रोशन हो
नीम तारीक सी रातों में चाँदनी की किरन
आए आहिस्ता से आग़ोश मंे सिमट जाए,
खेल-ही-खेल में दिल-दिल न जान-जाँ न रहे
और हम हम न रहे दिल पे जब वो बन आए
वो तो बेबस है चलो हम पे ही बस चला है
उसका हक़ है न मेरे दिल में उतर आने का।