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अंधकार बढ़ता जाता है / हरिवंशराय बच्चन

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अंधकार बढ़ता जाता है!

मिटता अब तरु-तरु में अंतर,
तम की चादर हर तरुवर पर,
केवल ताड़ अलग हो सबसे अपनी सत्ता बतलाता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!

दिखलाई देता कुछ-कुछ मग,
जिसपर शंकित हो चलते पग,
दूरी पर जो चीजें उनमें केवल दीप नजर आता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!

ड़र न लगे सुनसान सड़क पर,
इसीलिए कुछ ऊँचा स्वर कर
विलग साथियों से हो कोई पथिक, सुनो, गाता आता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!