भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंधकूपों का अँधेरा रोशनाई हो गया है / प्रेम भारद्वाज

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 30 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem> अंधकूपों सा अँधेरा रौशनाई हो गया है राहज़न का राज़ लिखना ही बु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंधकूपों सा अँधेरा रौशनाई हो गया है
राहज़न का राज़ लिखना ही बुराई हो गयाहै

कुछ लकीरों के फक़ीरों की यहाँ इतनी चली है
राह अपनी ख़ुद बनाना बेवफाई हो गया है

कामना की दौड़ में फिरसत किसे समझे ज़रा भी
यातना उस पेड़ की जो बोनसाई हो गया है

गलकटों चोंरों लुटेरों जाबिरों के कारनामों
का बदल कर नाम हाथों की सफाई हो गया है

इस हवा में साँस लेना था कहाँ आसान अब तो
फेफड़ों के ज़ोर की भी आजमाई हो गया है

कब करिंदों की सफाई का चले अभियान देखें
डॉन का तो काम सारा बासफाई हो गया है

प्रेम रस मुजरे दलाली हैं वही बस नाम केवल
देवदासी से बदलकर आजा बाई हो गया है