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अंधारै सूं / इरशाद अज़ीज़

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सूरज
घणी देर तांई
सूवतो रैवै
हुंवतो रैवै
सुपनां मांय अंधारो

थूं जद चावै
भर सकै
थारै मन मांय रंग
बाथेड़ा तो करणा पड़सी
जीते-जी
अंधारै सूं।