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अंधेरा और रोशनी-3 / गिरिराज किराडू

"जिसे बुहार कर रख दिया उसे कहीं सम्भाल कर भी रक्खा या नहीं ?
क्या पता उसी में चली गई हों वे आख़िरी तीलियाँ भी !"
"तुम्हें कितनी बार कहा है जिसे बुहारो उसे सम्भाल करभी रक्खा करो ।
और झाड़ू को यूँ उल्टा खड़ा मत किया करो ।"

मैं यूँ कहता हूँ मानो उसने इस घर में रहना शुरू कर दिया है ।

"और हाँ, ये तीलियाँ मुझे सिर्फ़ सिगरेट जलाने के लिए ही नहीं चाहिए होतीं ।
समझीं !"