भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंबर बरसा बड़ा चिवा मेरी सासड़ / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंबर बरसा बड़ा चिवा मेरी सासड़ राणी कोई नीम्ब झलार ले
सात जणी का झूमटब मेरी सासड़ राणी कोई सात्यों री पाणी नां जां
राहे मसाफर जांदड़ा मेरी सासड़ राणी कोई जांदे ना पानी पला
मेरा तो पाणी बिस भर्या सुण जाण वाले कोई कोई पीउंदेउ मरजा
म्हारतां घर के गारडू कोई पीयांगे जहर उतार
जो थारे घर के गारडू सुण सालू वाली कोई हम से क्यूं घडला उठाय
घडला उठाएऊ सास ते सुण सालू वाली कोई अपणा तो हाल बता
छह्या के बालम घर रहे सुण सालू वाली लिया म्हारे साथ
साथ जायों मत ना रहे सुण चीरे वाले कोई दो कुल खावेंगी लाज
घडला उठा घर आ गई सुण सासड़ राणी कोई सुणियों जी हमारी बात
राहे मसाफर मिल्या सुण सासड़ राणी बातां मां लग गई देर
कैसे सो गाबरू सुण बहुवड़ राणी कोई कैसी सूरत होणहार
तकड़ा सो गाबरू सुण सासड़ राणी कोई जेठ सूरत होणहार
बें तो तेरे बालमा सुण बहुवड़ मेरी कोई कस क्यों ना पकड़ी तां बां
कोठा चढ़ का देखले सुण बहुवड़ मेरी कोई नेड़ा गये या दूर
आखां ते दीखा नेड़ा सासड़ मेरी पैरां ते कोस पचास