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अइपन पिसिले, कोहबर लिखिले/ मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अइपन<ref>आटा को पानी में घोलकर अथवा चावल पीसकर बनाया गया तरल पदार्थ, जिससे कोहबर में चित्र बनाया जाता है</ref> पिसिले, कोहबर लिखिले, लिखली मनचित लाय<ref>मन लगाकर</ref> रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखों कोहबर॥1॥
ताहि कोहबर सुतलन कवन दुलहा, जवरे सजनवाँ के धिया रे।
दिलजान लिखलों कोहबर, मनमोहन लिखलों कोहबर॥2॥
ओते सूतूँ, ओते सूतूँ, सुगइ कवन सुगइ, तोरे पीठे<ref>पीठ में</ref> गरमी बहूत रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥3॥
अतिना<ref>इतना</ref> बचन जब सुनली कवन सुगइ, रूसि नइहर चलि जाय रे।
दिलजान लिखलों कोहबर, मनमोहन लिखलांे कोहबर॥4॥
रहिया में रे भंेटलन भइया, कवन भइया, कहाँ बहिनी चललू अकेल रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥5॥
लाज सरम केरा बात जी भइया, कहलो न जाए, परपूता<ref>पराये का पुत्र</ref> बोलले कुबोल रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥6॥
हँसि हँसि चिठिया जे लिखथिन कवन दुलहा,
देहुन गल<ref>दे आओ</ref> पियारो<ref>प्रिय, प्यारी</ref> सरहज हाँथ रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥7॥
मानु मानु<ref>मान जाओ</ref> ननद हे हमरी बचनियाँ,
आजु सोहाग केरा रात रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥8॥
कइसे में मानूँ हे भउजी, तोहर बचनियाँ,
परपूता बोलले कुबोल रे।
संखा चुरी<ref>शंख की चूड़ी</ref> देलन मसकाय<ref>तोड़</ref> रे, डाँसल सेजिया<ref>बिछाया हुआ, बिछावन</ref> उदासे<ref>उदास</ref> रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥9॥
मानु मानु ननद हे हमरी बचनियाँ।
फेनु कै<ref>फिर से</ref> सेजिया डसायब रे, फेनु देबो संखा चूरी पेन्हाय रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥10॥
मानली कवन सुगइ चललि बिहँसि रे।
दिलजान लिखों कोहबर, मनमोहन लिखांे कोहबर॥11॥

शब्दार्थ
<references/>