भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अइसन गाँव बना दे / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:23, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमाकांत द्विवेदी 'रमता' |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अइसन गाँव बना दे, जहाँ अत्याचार ना रहे
जहाँ सपनों में जालिम जमींदार ना रहे

सबके मिले भर पेट दाना, सब के रहे के ठेकाना
कोई बस्तर बिना लँगटे- उघार ना रहे
सभे करे मिल-जुल काम, पावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे

सभे करे सब के मान, गावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे

रचनाकाल : 18.03.1983