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अइसन गाँव बना दे / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

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अइसन गाँव बना दे, जहाँ अत्याचार ना रहे
जहाँ सपनों में जालिम जमींदार ना रहे

सबके मिले भर पेट दाना, सब के रहे के ठेकाना
कोई बस्तर बिना लँगटे- उघार ना रहे
सभे करे मिल-जुल काम, पावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे

सभे करे सब के मान, गावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे

रचनाकाल : 18.03.1983