हे सुरतां!
म्हारा अकथ निबळा बोल
कैवूं म्है किण सूं
नीं सुझै कान
मायड़! तूं तो आडौ खोल!
काम अरथ रौ मुळ है
अरथ मूळ है मोख!
मोख मूळ है धरम रौ
धरम मूळ है तूं!
बंध्यौड़ी कामधेनु
महलां री पिरौळ
बोल....!
लाल चून्दड़ी वाळी म्हारै सुपनां री छियां
कथूं म्है किण बिध
राज औ गै‘रौ!
हे सुरतां!
म्हारा अकथ निबळा बोल!