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कवि: [[नागार्जुन]]{{KKGlobal}}{{KKRachna[[Category:कविताएँ]]|रचनाकार=नागार्जुन[[Category:नागार्जुन]]|संग्रह=}}{{KKPrasiddhRachna}}~*~*~*~*~*~*~*~ {{KKCatKavita‎}}<Poem>
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
 
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
 
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
 कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त । शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
 
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
 
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
 कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद । बाद। </poem>रचनाकाल : 1952
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