Last modified on 23 जुलाई 2013, at 20:22

अकेले ही हमें दुनिया के हर मंज़र में रहना है / 'महताब' हैदर नक़वी

अकेले ही हमें दुनिया के हर मंज़र में रहना है
अभी कुछ दिन यूँ दीवार-ओ-बाम-ओ-दर1 में रहना है
 
न जाने किस हवस के ख़्वाब दिखलाता है वह मुझको
अभी कुछ और ही सौदा2 हमारे सर में रहना है
 
हमारी ख़्वाहिशें अपनी जगह पर सच सही लेकिन
वो मूरत है, उसे यूँ ही सदा पत्थर में रहना है
 
भला मालूम है किसको दिले बेताब की मंज़िल
कभी इस दर पे रहना है कभी उस घर में रहना है
 
बजुज़3 मश्क-ए-सुखन4 कुछ काम भी अपना नही शायद
सो अब ता-उम्र हमको बस इसी चक्कर में रहना है

1-दीवार, छत और द्वार 2-पागलपन 3-अतिरिक्त