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अक्षत,हल्दी छूकर सपने / राजेश शर्मा

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अक्षत,हल्दी छूकर सपने, द्वारे-द्वारे जाएंगे
शायद कुछ लौटे आमंत्रण,अब स्वीकारे जाएँगे
 
जबसे कोई मौन ,दृगों पर, होकर एकाकार बँटा,
मन के भीतर जाने क्या-क्या,जाने कितनी बार बँटा
गीतों के घर , मुझसे पहले, ये बँटवारे जाएँगे
 
पूछे दो बूंदों का सागर, पनघट रीत कहाँ बैठा है,
दिखतीं जहाँ परिधियाँ केवल, मेरा मीत वहां बैठा है
नहीं पहुचती जहाँ कल्पना,क्या हरकारे जाएँगे
 
पलक- पाँवडों की पीड़ा ने, विकल किया फिरसे तन-मन,
बाहर खुशबू , भीतर-भीतर,एक सुलगता चन्दन वन
कैसे अंगारों पर चलकर ,दिन, पखवारे जाएँगे
 
काँधों पर सूरज को ढ़ोया, आँखों में बरसात कटी,
आते-जाते दिन बीता और,गाते-गाते रात कटी
लेकर सजल उनींदी आँखें ,हम भिनसारे जाएँगे