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अक्षर-मोती / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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256
तुम्हारे हाथ
जगा दें सोए भाग
जिसको छू दें ।
257
किसे है पता
नींद उड़ी नैनों से
किसकी ख़ता ।
258
वक्त ने छीने
पलकों के सपने
थे जो अपने ।
259
आशा न खोना
लगा ही रहेगा ये
आँसू का मेला ।
260
बेटी मुस्काए
तन-मन के दु:ख
हवा हो जाएँ।
261
दर्द की नदी
पार करते बीती
पूरी ही सदी ।
262
मन की माला
भावों के मोती-गूँथी,
छोड़ें न साथ।
263
पाखी का प्यार
मिल-बाँटके चुगें
नहीं तकरार ।
264
होते ही भोर
बबूल पे मयूरी
जोहती बाट ।
265
वाटिका रूप
बिखेरे तू खुशबू
भरके सूप ।
266
अक्षर-मोती
मन-माला में गूँथ
सौरभ भरे।
267
मन का ताल
प्रभु-सा है पावन
डूबा तो जाना।
268
खिला कमल
या तुम मुस्काई हो
बनके भोर ।
269
मन के द्वार
गाता रहूँगा सदा
नेह आरती ।
270
पढ़े हैं सदा
अमृत-पगे मन्त्र
सींचा है मन ।