Last modified on 15 नवम्बर 2014, at 14:34

अखबारों में / शशि पुरवार

Shashi Purwar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 15 नवम्बर 2014 का अवतरण (*//नवगीत//*)

हस्ताक्षर की कही कहानी
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला, बनती खबरे
छपी सुबह अखबारों में।

राजमहल में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है

रक्षक भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में।

अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीन व्यवहारों में।

किस पतंग की डोर कटी है
किसने पेंच लडाये है
दांव पेंच के बनते जाले
सभ्यता पर घिर आए है

आँखे गड़ी हुई खिड़की पर
होठ नये आकारों में।