भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अखबार में नाहर चूमती बायर को फोटो देख्याँ पाछै / अतुल कनक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>(1) ऊँ को हेत छै जे हौंसलो द्ये छै नाहर के ताँई भी च…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=अतुल कनक
 +
|अनुवादक=
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
<poem>(1)                                       
 
<poem>(1)                                       
 
ऊँ को हेत छै
 
ऊँ को हेत छै

18:37, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

(1)
ऊँ को हेत छै
जे हौंसलो द्ये छै
नाहर के ताँई भी चूम लेबा को
न्हँ तो
कांई जेज लागे छै
मनख्यावड़ा मरद ईं भी
मनखखोर होबा में?

(2)
नत पाँतरै
छपै छै खबराँ
के डायजा बेई बाळ दी जीवती बायर
के सगा काका ने ही खैंच द्या
मासूम बच्ची का उणग्यारा पे
हवस का रींगटा
के कोय मनख
टॉफी को लालच दे ’र
नान्हा टाबर ईं ले ग्यो
लोथ को सुवाद चाखबा बेई।

मनख का भेख में धूमता
भेड़ियान् सूँ बचबा कारणै
जाबक जरूरी हो ग्या छै नाहर को सगपॅण/
नाहर पींजड़ा में छै भी तो कांई
भेड़ियान् अर सुआळ्याँ ईं भगाबा बेई तो घणीं छै
पींजड़ा में बुज्या नाहर की दकाळ भी।
मनख हो के जनावर
जूण तो हेत ही हेरे छै
अर जे साता को पतियारो देवे
जिनगाणी का कँचळाया हाथाँ में@
ऊँ ने कोय कष्याँ न्हँ चूमै?