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अखबार / ममता किरण

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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (ममता किरण की कविता)

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लोग कहते हैं
अगले ही दिन
बेकार हो जाते हैं अख़बार
लेकिन गौर करो तो
कितने काम के हैं अख़बार ...
अख़बार बन जाते हैं
छोटे छोटे लिफाफे
जिनसे हो जाता है रोटी का जुगाड़
जब कुछ नहीं होता पास
अख़बार बन जाते हैं बर्तन
रख लेते हैं उनमें
खाने का सामान
अख़बार बन जाते हैं बिछौना
किसी भी जगह उन्हें बिछा
गरीब मिटा लेता है
अपनी थकान
अख़बार हो जाते हैं खिलौना
नन्हे हाथ बना लेते हैं
कभी पतंग कभी नाव तो कभी जहाज़
पूरे परिवार का ही
सहारा बन जाते हैं अख़बार
कितने काम के हैं
बेकार घोषित कर दिए गए अख़बार ।