भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अखरहिं अउवा के इहे धनि लिटिया हो पकावे / भोजपुरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:15, 20 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=थरुहट के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अखरहिं अउवा के इहे धनि लिटिया हो पकावे
आहो राम अरन भइंसी के रे दूध, जेंइए लेहु परदेसीय भँवरा।।१।।
खाई-पी के कुँवर जब चलि भेले हे, कि आहो प्रान,
धोतिया पकड़ि के कामिन गे रोवे, कि जइबों कुँअरा गे तोरा संगवा।।२।।
हाँ रे, आधा गउँवा बसे निजा नइहर, गउँवा हे,
हाँ रे, माँझ गउँवा बसे मोर ससुररिया, कि जनि जाहु धनि मोरा संगवा।।३।।
हाँ रे, आधा गाँव बसे निजा नइहर, गउँवा आहो प्रान,
माँझ गउँवाँ बसे ससुररिया, त जइबों कुँवर तोरा संगवा।।४।।