भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अख़बार अब / रेखा राजवंशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:55, 23 जुलाई 2021 के समय का अवतरण

बन गया हर शख़्स ही अख़बार अब
सब ख़बरची हो गये बेकार अब

मैं कहाँ हूँ, कौन मेरे साथ है
शोर होता है सरे बाज़ार अब

लुट चुके हो फिर भी कुछ मत बोलना
चोर बन बैठा है इज़्ज़ततदार अब

दोस्ती और दुश्मनी है एक सी
कट गये रिश्तों के सारे तार अब

चश्मेनम उनके के लिए बेचैन है
रात कटनी हो गयी दुशवार अब

लोग सब ख़ुदग़र्ज़ियों में खो गए
हो गयी चाहत भी कारोबार अब

कै़स लैला हीर रांझे क्या हुए
क्यों नहीं मिलता है वैसा प्यार अब

बुझ गए सारे दिए उम्मीद के
बंट गए घर के दरो दीवार अब