भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अख़बार / गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के काला पड़ जाता है ख़ून
पपड़ी सी जम जाती है
खुरच-खुरच के नाख़ूनों से चमड़ी छिलने लगती है
नाक में ख़ून की कच्ची बू
और कपड़ों पर कुछ काले-काले चकत्ते-से रह जाते हैं

रोज़ सुबह अख़बार मेरे घर
ख़ून से लथपथ आता है