भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा / बाक़र आग़ा वेलोरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 5 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाक़र आग़ा वेलोरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> अगरच...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
निगाह में तिरी हरगिज़ न भाया अश्क मिरा

मैं तेरे हिज्र में जीने से हो गया था उदास
पे गर्म-जोशी से क्या क्या मनाया अश्क मिरा

हज़र ज़रूरी है ऐ सर्व-ए-नाज़ इस से तुझे
कि आबशार-ए-मिज़ा का बहाया अश्क मिरा

हुआ है कौन सै ख़ुर्शीद-रू से गर्म इतना
कि मेरे दिल को जो ऐसा जलाया अश्क मिरा

ब-रंग-ए-ग़ुंचा-ए-अफ़्सुर्दा हो गया था ये दिल
सो वैसे मुर्दा को पल में जलाया अश्क मिरा

हुआ वो जब नज़र-अंदाज़ यार का ‘आगाह’
मुझे ये बे-असरी पर हँसाया अश्क मिरा