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अगर उदास है वो तो कोई मजबूरी है / डी. एम. मिश्र

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अगर उदास है वो तो कोई मजबूरी है
कोई वज़ह है अगर दो दिलों में दूरी है।

आज जी भर के चाँदनी को अपनी देखेंगे
हमारे पास अभी एक रात पूरी है।

आप जाँये तो मुस्करा के यहाँ से जाँये
इस ग़ज़ल में ये शेर भी बहुत ज़रूरी है।

आप दे लाख दलीलें, हजा़र तहरीरें
सही है वो जिसे समाज की मंज़ूरी है।

हरेक बात का उत्तर वो हाँ में देता है
अजीब चीज़ ज़माने में जी-हुज़ूरी है।

हमारे घर से आज शाम का धुआँ न उठा
तुम्हारे मयकदे की शाम तो अँगूरी है।