Last modified on 1 दिसम्बर 2014, at 13:11

अगर दौलत भी शामिल हो तो दौलत भी कमाती है / ओम प्रकाश नदीम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 1 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अगर दौलत भी शामिल हो तो दौलत भी कमाती है ।
वगर्ना सिर्फ़ मेहनत सिर्फ़ मेहनत ही कराती है ।

सवेरे दस बजे से रात के बारह बजाते हो,
हमें भी भूख लगती है हमें भी नींद आती है ।

अक़ीदे के कुएँ से उसको बाहर खींचता हूँ जब,
न जाने क्यों मेरे हाथों से रस्सी छूट जाती है ।

अगरचे डर है लेकिन आज़माते हैं ये नुस्ख़ा भी,
ज़रा देखें हमारी बेरुख़ी क्या रंग लाती है ।

वो अज़्मत है कि चाहें तो क़दमबोसी करे दुनिया,
मगर इक भूख के आगे वो अज़्मत हार जाती है ।